रविवार, 16 मई 2010


THE LORD OF THE RINGS: यह वाक्य (अभिव्यक्ति) अक्सर भारत के समाचार पत्रों और पत्रिकाओ मे छपता है कि अगर भारत में (एक विशेष वर्ग और धर्म के लिए) क्रिकेट एक धर्म होता निसंदेह सचिन तेंडुलकर उस धर्म मे भगवान कि तरह पूजे जाते आज इसी चर्चा को को आगे बढ़ाते हुवे मुझको यह लेख लिखने का विचार आया सचिन रमेश तेंडुलकर भारत की सर ज़मीन पर 24 अप्रैल 1973 को जन्म लेने (अवतरित होने) वाला एक ऐसा तारा जिसने अपनी चमक से भारत ही नहीं वरन पूरे विश्व को अपनी कला और कौशल के आगे नमन करने पर मजबूर कर दिया अगर मै सचिन को THE LORD OF THE RINGS कि उपाधि, ख़िताब, नाम, पदवी से पुकारता हू तो शायद किसी को इस पर किसी को एतराज़ नहीं होगा यह क्रिकेट का मैदान दिखने मे एक रिंग ही कि तरह ही होता है अब चाहे यह रिंग भारत का एडेन गार्डेन हो या इंग्लैंड लोर्ड्स का मैदान या ऑस्ट्रेलिया का पर्थ या MELBOURNE CRICKET GROUND (MCG) सभी एक से होते है पर फर्क सिर्फ इतना होता है की कही पर भक्त गण कम कही ज्यादा होते है चलिए इस चर्चा मे शामिल होने से पहेले हम उस LORD के जीवन पर नज़र डाले तेंडुलकर मुंबई में पैदा हुआ थे उनके पिता रमेश तेंडुलकर, एक मराठी उपन्यासकार थे जिन्हों ने अपने बेटे का नाम अपने पसंदीदा संगीत निर्देशक सचिन देव बर्मन के नाम रखा तेंडुलकर के बड़े भाई अजित ने उसे क्रिकेट खेलने के लिए प्रोत्साहित किया उसको वह कोच और गुरु, रमाकांत आचरेकर के मार्गदर्शन में क्रिकेट कैरियर और उसकी दिशा निर्देशो (बारीकयो) को समझने के लिए पहुचे अपने स्कूल के दिनों में सचिन ने एमआरएफ (MRF) पेस फाउंडेशन में भाग लिया और वह एक तेज गेंदबाज के रूप में प्रशिक्षित होना चाहते थे लेकिन ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज डेनिस लिली उस में मौजूद थे वह सचिन से गेंदबाज के रूप मे प्रभावित नहीं हुवे और उनको सुझाव दिया कि वह अपनी गेंदबाजी की जगह बल्लेबाजी में ध्यान दे उस महानतम गेंदबाज़ (डेनिस लिली ) ने उनमे एक महान बल्लेबाज की छवि देखी इसी लिए कहा जाता है की हीरे की परख सिर्फ जौहरी ही जानता है जब वह (सचिन) छोटा था वह घंटो नेट पर अभ्यास करता था उसके गुरु आचरेकर अभ्यास के दौरान स्टंप के शीर्ष पर एक रुपया का सिक्का रख देते थे और सभी अभ्यास मे शामिल गेंदबाजो से कहते थे की जो गेंदबाज सचिन को आउट कर देगा वह सिक्का उस गेंदबाज़ को मिलेगा यदि तेंदुलकर अंत तक आउट नहीं होते थे कोच वह सिक्का उसे दे देंते थे तेंडुलकर ने अब तक 13 सिक्के जीता जिसे वह अपने जीवन की सबसे बहुमूल्य संपत्ति के रूप में समझते है आखिर वह दिन आ ही गया जब क्रिकेट की धरती पर किशन की तरह अपनी बासूरी (बल्ला) लेकर सभी को नाचने आगे वह दिन था 11 दिसंबर 1988 जब सचिन की आयु सिर्फ 15 साल और 232 दिनों तेंडुलकर ने पाकिस्तान के खिलाफ कराची में 1989 में अपने वृद्ध पहला टेस्ट मैच खेला सिर्फ 16 वह सिर्फ 15 रन बनाया वकार यूनुस, इमरान खान वसीम अकरम और कई रफ़्तार दार गेंदबाजों का सामना करना पड़ा वह पाकिस्तान के तेज आक्रमण के सामने अपने शरीर पर कई वार-बाउंसर खाया, नाक पर एक बाउंसर द्वारा मारा गया खून बहा लेकिन उसने चिकित्सा सहायता लेने से मना कर दिया है और बल्लेबाजी जारी रखी वह दिन है और आज का दिन है सचिन अपने विरोधी गेंदबाजों को अपने बल्ले ( बासुरी) की धुन पर निरंतर नचा रहे है कभी वह किशन का रूप लेते है तो कभी वह अर्जुन का रूप लेकर अपने लक्ष्य को भेद ने मे कोई कसार नहीं छोडते है कभी वह शंकर का रूप धारण करलेते है और मैदान पर तांडव करने लगते है वह कभी-कभी लिटिल मास्टर या मास्टर ब्लास्टर के रूप में संदर्भित किया जाता है उनके तांडव के अनेक रूप हमने देखे है और जिसका नया रूप हमने उनकी असाधारण पारी भारत और साउथ अफ्रीका 2009/10 का एक ODI मैच जिसमे उन्होने गेंदबाजों को खूब नचाया और सचिन तेंडुलकर ने अपना सर्वोच्च व्यक्तिगत स्कोर बनाया तेंडुलकर ने आराम नहीं किया और सभी गेंदबाजों पर अपनी गोलीबारी के रखा था
सचिन की बल्लेबाजी शैली महानतम बल्लेबाज सर डोनाल्ड ब्रेडमैन की तरह ही थी उन्होने उससे प्रभावित होकर उसको अपने घर पर आमंत्रित किया तेंडुलकर क्रिकेट रुपी अवतार ने अपने खेलने (बल्लेबाजी) की शैली में कई आधुनिक और अपरंपरागत स्ट्रोक (तीरों) शामिल किया ठीक उसी तरह जिस तरह एक देवता अपने तरकश मे अनेक तीर रखते है और समय - समय पर उसका प्रयोग करते है तो अंत मे यह कहना उचित ही होगा की सचिन क्रिकेट के मैदान के अवतार है जिनकी तुलना किसी से करना मुमकिन नहीं है ....तुम जियो हजारो साल और भारत और भारत वासियों को तुम पर नाज़ है.

ISRAR AHMAD
KANPUR- INDIA

2 टिप्‍पणियां:

शून्य ने कहा…

सचिन जैसा खिलाड़ी कोई दूसरा नहीं

आदर्श राठौर ने कहा…

सचिन इज़ द बेस्ट

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