





Women’s Reservation Bill-A War Behind The Wall
महिला बिल (Bill) .......महिला किल (Kill)......दिले-नादान तुझे हुवा किया है आखिर इस बिल की असल वजह किया है जनाब इस वक़्त मई कोई शायरी के मूड मे नहीं हूँ हमारे देश की नारियो (महिलाओ) की शर्म, लज्जा, श्रद्धा और सम्मान ही देश की तमाम विरासतों मे से एक है चाहे कोई भी धर्म हो, हर धर्म मे साफ़ साफ़ लिखा और कहा जाता है की शर्म महिलाओ का गहना है जो उनकी शोभा बढाता है और उस गहने के बिना वे कैसी लगेगी मेरे इस लेख के लिखने का सार-सिर्फ इतना है की भाई हमको इस बिल के पीछे किया मंशा छुपी है उक्सो भी समझ चाहिए...... मैने अपनी 35 साल की आयु मे दुनिया के करीब 08-10 देशो की यात्रा किया और करीब 02 देशो मे काम करने का सौभाग्य मिला लेकिन नारी और नारी समाज की जो तस्वीर हमारे देश की है वह किसी और देश मे देखने को नहीं मिलती है भारत एक श्रेणीबद्ध समाज है भारतीय समाज में महिलाओं को हमेशा ही चिंता और चर्चा का विषय बनी रहती है .....आज हमारे सामने चर्चा का विषय महिला आरक्षण बिल है...इस बिल का इतिहास आज से करीब 14 साल पुराना है वर्ष 1996 में श्री देवेगौड़ा (पूर्व प्रधानमंत्री) सरकार ने महिला आरक्षण बिल के रूप में 81संविधान संशोधन विधेयक पेश किया लेकिन कुछ कारणों की वजह से यह बिल लोक सभा मे पास नहीं हो सका और दो साल के बाद पुनः 1998 में श्री अटल बिहारी वाजपेयी (पूर्व प्रधान मंत्री) की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के नेतृत्व में यह बिल फिर से 84 संविधान संशोधन विधेयक के रूप में द्वारा 12वीं लोकसभा में पेश किया गया लेखिन पास नहीं हो सका और जब 1999-श्री अटल बिहारी वाजपेयी (पूर्व प्रधानमंत्री) की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार को फिर से 13वीं लोक सभा में बिल लायी लेकिन फिर वाही हालत रहे और लगातार हर सरकार ने 2002 और 2003 मे फिर पेश किया लेकिन 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के पालन हार और हमारे वर्त्तमान प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने इसे अपने साझा न्यूनतम कार्यक्रम में शामिल है.प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गाँधी के अथक प्रयासों से यह बिल २०१० में राज्यसभा में भरी शोरगुल के बाद पास हो गया लेकिन अभी लोक सभा में इसे मैराथन दौड़ में से गुज़ारना होगा....!
हमारे वर्त्तमान सरकार का कहना है की वह इस बिल के द्वारा महिलाओं सहित समाज के कमजोर वर्गों के सशक्तिकरण के प्रति प्रतिबद्ध है लेकिन इस बिल के अंदर कही न कही हमारी चट्टान से भी मज़बूत संस्कृत ,तहज़ीब,संस्कार और सामाजिक मूल्यों को धक्का पहुचाने, तोड़ना, सेंध लगाना अथवा नष्ट करने की कही न कही शाजिश या बुरी योजनाये पर्दे के पीछे से चल रही है और हमारे राज नेता उस को समझने के योग नहीं है...........! हमारे देश की संस्कृति विश्व में सर्व-श्रेष्ठ, उच्चतम मानी जाती है और इसकी मिसाल दे जाती है और इस तरह आदर्श बनाना का पाठ दूसरे देश सिखाते है और विदेशो से लोग यहाँ पर आते है उनका मकसद यहाँ संस्कृति और समाज को करीब से देखना और समझना और यहाँ आने पर वे इससे प्रभावित होकर जाते है और अपने मन में ठान लेते है की बाकि का जीवन वे इसी तरह से जिएगे परन्तु यह बाते अमरीकी और पश्चिमी संस्कृति से चिपके देशो को रास नहीं आती है और उन्होंने हमारी अमूल्य और अनमोल धरोवारो को मिटा देना चाहते है विश्व की करीब करीब सभी देशो की संस्कार,सामाजिक मूल्यों और जीवन शैली पूरी तरह बदल चुकी है और उनपर दूसरे देशो (अमरीकी और पश्चिमी संस्कृति) का रंग चढ़ चुका है जबकि मै अपनी पिछले विदेश यात्रायो के दौरान, मैंने भारतीय को संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी पाया और उसका कारन सिर्फ और सिर्फ हमारे तहजीब, हमारे विचार, हमारी दृष्टि और हमारी समाज और धर्म की गहरी जड़ें जो दूसरे समाज से अलग रखती है मैं अपना गहरा दुख व्यक्त करना चाहूगा और पाठको से कुछ घटनाओ पर खेद प्रकट करूगा....! वर्ष 1999 की बात है जब मै जर्मनी की यात्रा पर था और अपने एक सरदार दोस्त के पिज्जा सेंटर पर उनके साथ बात कर रहा था तभी वह एक 50 साल का लम्बा-चौड़ा आदमी दाखिल हुवा और उसने बियर की बोतल और पीने लगा कुछ 5 मिनट के बाद एक 30 साल की एक औरत वह आयी और प्रेमालिंगन (चिमटना) करने लगी चूंकि अमरीकी और पश्चिमी संस्कृति में यह बात सामान्य है तो मुझको ज़रा भी शक नहीं हुवा और करीब 10 मिनट के एक 17-18 साल की लड़की और 22-23 साल का एक लड़का भी वही आया और वे भी वही पर प्रेमालिंगन करने लगे जिसको देख कर मेरे मन में एक घृणा (नफ़रत) और कौतूहल सी पैदा हुई जब वे लोग वह से चले गए तब मैने अपने दोस्त से कुछ पूछना चाहा ...लेकिन उसने मेरे चेहरा पढ़ लिया और मेरे कुछ बोलने से पहेले ही वह बोला तुम इस दृश्य को देखकर इतनी घृणा (नफ़रत) और कौतूहल नहीं होगी लेकिन यह जान कर तुम और भी आश्चर्यचकित होगे की वह 50 साल का आदमी अपनी प्रेमिका के साथ था और वह जवान लड़की उसकी (आदमी)बेटी थी और अपने मंगेतर साथ थी और उन दोनों को एक ही स्थान पर प्रेमालिंगन (चिमटना) कर रहे थे और तब उस समय मुझे एक भारतीय होना का गर्व महसूस और मैने अपनी संस्कृति और समाज को धन्यवाद कहा जो आज भी इस इन प्रकार के कचरे (अमरीकी एवं पश्चिमी संस्कृति और समाज) अब भी अछूता है.....!और मुझको फिल्म जुड़वाँ का अन्नू मालिक का गया हुवा वह गीत याद आ गया की ईस्ट या वेस्ट इंडिया इस दी बेस्ट ………….!
अमरीकी एवं पश्चिमी देशो ने हमारे देश की संस्कृति के साथ खेलने का काम तो 15 साल पहले ही शुरू कर दिया था जब लगा तार हमारे देश की खूबसूरत बालाओ (लडकियों ) की मानसिकता पर ख़ौफ़नाक प्रहार आरंभ कर दिया था, और उनको वह लुभावने सपने दिखाना की अगर सुष्मिता और ऐश वार्या इस मुकाम को पा सकती है तो तुम लोग क्यों नहीं लेकिन शायद उन सब लडकियों को मालूम नहीं की वह जगमगाती और तलिस्मी जीवन को पाने के लिए उनको कितनी ही शर्मशार परिस्तिथियों और सीमायों का सामना करना पड़ता है.
यह महिला बिल भी उसकी एक कड़ी है और हमारे समाज मे नर-नारी के बीच से एक शर्म ,लज्जा और सम्मान का का पर्दा हटा देना और उनको विदेशो की तरह की मर्दों के सामानांतर ला कर खड़ा कर देना........ मै यहाँ के बात ज़रूर बता देना चाहता हूँ की मै नारी उत्थान, शिक्षा, रोज़गार के खिलाफ नहीं हू लेकिन अमरीकी एवं पश्चिमी देशो के जिस प्रारूप का अनुसरण हम कर रहे है वह उस मार्ग की तरह है जिसके एक तरफ तो खाई है और दूसरी तरफ कुआ .......हमारे बीच भी मर्द और औरत के बीच के फासले को मिटा देना चाहते है जिस तरह उनके देश में ख़त्म हो चुका है.हम यह कैसे भूल सकते है की यह फ़र्क अल्लाह (ईश्वर) ने खुद बना कर इस धरती पर भेजा है तो हम इस विधि के विधान को कैसे बदल सकते है हम झांक कर देखे उन सभी देशो मे जहा पर स्त्री और पुरुष के बीच का अंतर मिट चुका है और उन सभी देशो की संस्कार,सामाजिक मूल्यों और जीवन शैली पूरी तरह बदल (मर) चुकी है न बडे छोटे का सम्मान है, न नारी पुरुष …….क्यों की उनकी आधुनिकता और धन की लालसा ने सब ख़त्म कर दिया और धन की धर्म है नारी पुरषों की तरह काम करती है और धन कमाती है और इस कारण वे आजाद मानसिकता की हो जाती है उनपर से जो एक पारिवारिक और सामाजिक बंधन होता है वह धन की चक्की मे दम तोड़ देता है वे सभी ( मर्द-औरत, बच्चे बूढे और जवान ) धन और आधुनिकता रुपी नदी मे अपनी अपनी नाव खुद ही खेना चाहते है किसी का किसी पर नियंत्रण नहीं होता है सब खुद के मालिक मुख़्तार होते है और यही आधुनिक संस्कृति का रूप वह हमारी तरफ धकेलना चाहते है उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ इतना है कैसे हम भारत की नीव को हिला दे लेकिन हम उनके असली मकसद को समझ नहीं पा रहे है पिछले करीब 15सालो से हमारे देश मे अमरीकी एवं पश्चिमी संस्कृति और समाज की काली छाया हमारे देश की गौरवपूर्ण संस्कृति ,समाज,तहज़ीब, संस्कार और सामाजिक मूल्यों पर ग्रहण बन कर छाती चली जा रही है इन देशो ने कई रूपों मे हमारे देश पर प्रहार करना शुरू कर दिया है अपने डिब्बा बंद खानों से हमारे स्वस्थ पर भयंकर प्रहार करना शुरू कर दिया.हम भारतीय जो अपने ढाबों, शाकाहारी और मांसाहारी भोजनों का लुफ्त लेते थे अब इनके नक्शे कदम पर चलते हुवे पिज्जा, पास्ता, चाउमीन या बर्गर के मोहताज हो रहे है न तो पेट की भूख ही ख़ातमा करती है और न नीयत ही भारती है.सिर्फ जेब ही खाली करता है.यह पिज्जा, पास्ता,चाउमीन या बर्गर हमारे सेहत के लिया बहुत ही हानिकारक है यह विभिन प्रकार की बीमारियों को दावत देते है हम अपने नेबू पानी और गन्ने का रस भूल कर डब्बा बंद पेप्सी-कोला की तरफ दौड़ रहे है नतीजा सुगर(रक्तचाप), अधिक मोटापन और काम आयु मे ही बूडा दिखने वाला चेहरा.पैसा वे बनाते है और हम अपनी जान गवाते है वे एक तीर से दो शिकार करते है पहले टेस्ट बेचते है और फिर जब उस टेस्ट के आदी हो जाते है और उसके तरह तरह की बीमारी हो जाती है तब दावा बेचते है यह ठीक उसी तरह से काम करते है जैसे एक कंप्यूटर बनाने वाली कंपनी एक बार एक Anti -Virus बना ती है फिर उसे से ज़यादा ताकतवर Virus बनती है ताकि पानी के साथ लड्डू भी बिकते रहे
आज प्रिंट मीडिया एवं विभिन रूपों मे अमरीकी एवं पश्चिमी संस्कृति और समाज हमारे घर घर मे घुस गया है और एक ला इलाज रोग की तरह घर के हर सदस को प्रव्हावित कर रहा है.टेलीविज़न पर आज रह तरह के नए-नए और भद्दे=भद्दे प्रोग्राम प्रसारित हो रहे है उदहारण के लिए एक चैनेल पर लव-गुरु नाम का एक प्रोग्राम आता है प्रोग्राम का शीर्षक पढ़ कर ही आप लोग समाज गए होगे की यह प्रोग्राम किस उलटी-सीधी चीजों का मिश्रण लेकर अपनी बात को सार्थक साबित करने का प्रयास करता होगा दरसल यह प्रोग्राम जहा तक मेरा ज्ञान है यह सलमान खान,गोविंदा और कैटरीना की एक फिल्म का रूप है जिसमे लव को कैसे हासिल किया जाये या लव मे क्या-क्या परेशानिया आती है उनकी बारीकियो को समझाता.... मेरे देश के नागरिको प्यार करना न कोई जुर्म है न पाप-प्यार तो जीवन का अभिन अंग है लेकिन प्यार की भी कुछ मरियादाये और सीमाए होती है जिस तरह से इस प्रोग्राम मे प्रस्तुतकर्ता प्यार के लोगो को टिप्स(नुस्खे) देता था और असका बोलने का अंदाज़ देख कर ऐसा लगता था की किसी तरह मै इस प्रोग्राम के प्रसारित स्थल पर चला जाऊ और श्रीमान जी का कान पकड़ कर बहार ले आऊ और बोलो भैया कुछ शर्म है प्यार के बारे मे तो बखान इस तरह देते हो जैसे-कोई मुल्ला या पंडित पूजा के बारे मे बताता है जिस समाज मे शर्म, श्रद्धा और सम्मान मानव जाती की एक ताक़त और विरासत समझी जाती है यह लव-गुरु उस शर्म और श्रद्धा को पैसे कमाने के लिया सारे आम बाज़ार करते है , उस दौरान वे क्या क्या बोल जाते है और यह कभी भी विचार नहीं करते है की उनकी बातो का समाज और समाज के कोमल मन, मस्तिष्क पर क्या असर होगा वे किस रह भटक जाये गे जिस आयु मे हमे उनको गीता-कुरान की सीख देनी चाहिए उस वक़्त हम उनको प्यार की सीख दे रहे है क्या यह हमारे बच्चो को उनके उज्जवल भविष्य से भटकाने की सोची समझी अमरीकी एवं पश्चिमी देशो की राजनीति नहीं है पहले हम उनको उनके देश की तरह प्यार के पाठ बतायेगे फिर उनके नक्शे कदम पर चलते हुवे सेक्स-ज्ञान, सेक्स शिक्षा का मुफ्त दूषित प्रसाद देगे, अमरीकी एवं पश्चिमी संस्कृति संस्कृति हमारे मन-तन सब को ग्रहण लगा रही है जो नारी पहेली शलवार कमीज़, साड़ी मे प्यार की देवी-अप्सरा लगती थी अब वह जींस और टी शर्ट मे आ चुकी है और हम इसको आधुनिकता का प्रतीक मानते है और बोलते है की भारत मे लिंग भेद ख़त्म हो रहा है नारी का उत्थान- तरक़्क़ी हो रही है लेकिन किया यही असली तरक़्क़ी.... शायद नहीं अगर समय रहते हुवे हमने इसपर मंथन नहीं किए तो हमारी संस्कृति और समाज दूसरो की तरह किताबो में ही सिमट जायेगा.. मै नारी की आज़ादी और तरक़्क़ी के खिलाफ नहीं हू लेकिन हमारे देश मे उनकी कुछ सीमाये (हद) है जिस तरह लक्ष्मण ने जंगल मे हिरन का पीछा करने से पहेले सीता जी के लिया एक सीमा रेखा या मर्यादा खीच दी थी और उनको बोला था की इस के बाहर मत जाना लेकिन धर्म का पालन करते हुवे वो रावण (भिखारी के वेश में ) को भिक्षा देने आयी और हरण ली गए ... ठीक उसी तरह हमारी देश की नारी अगर लोक लाज और सीमा रेखा या मर्यादा के बाहर जायेगी तो निश्चित रूप से उनकी लज्जा, शर्म रुपी गहने का हरण होना स्वाभाविक है ..............
कुछ वर्गों ,राजनीतिक दलों और धार्मिक संगठनो के विचार है की इस बिल के द्वारा वे महिलायों को एक नयी दिशा और जीने की राह मिलेगी और वे अपने अधिकारों और कर्तव्यों को और अच्छी तरह से समझ सकेगी............... देखते है समय चक्र किया खेल खेलता है
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