मंगलवार, 4 अगस्त 2009

HEALTH YA WEALTH – KHALLI BALI




HEALTH YA WEALTH – KHALLI BALI

पिछले सप्ताह मै अपने टीवी पर एक बहुत ही रोमांचित करने वाली फिल्म देख रहा था उस फिल्म के एक सीन को देखकर मुझको यह लेख लिखने का ख्याल आया. फिल्म का सीन था, जिसमे नायक रजनीकांत जो अपने हाथो से सिगरेट को आसमान में उछालते है और फिर अपनी बन्दूक से उस पर फायर (गोली चलाते है) करते है और वह सिगरेट आसमान में जलजाती है और वापस उनके हाथ में आकर गिरती है. इस सीन को देखते ही मेरे दिमाग में न जाने कितने ही नायक और खलनायक के सीन खुद बे खुद घूमने लगे. कुछ सीन में खलनायक अपने सिगरेट वाली छवि से एक नयी इबारत
लिख गए …………... उसके सिगरेट के गोल-गोल छल्ले उकसी नयी पहचान बन गया, मरहूम अजीत (हमीद खान) जिनको दुनिया शेर (LION) के नाम से जानती है उनके हाथ की सिगार और उनके बोलने/सवाद शैली फिल्म इंडस्ट्री में एक अलग पहचान थी .लेकिन किया इन नायक और खलनायक ने अपने जीवन में यह सोचा है की उनकी यह अदा समाज पर कितना और कैसा प्रभाव छोड़ेगी ……. शायद नहीं.उनकी हर अदा उन्होंने तो परदे पर तालिया बटोरने के लिया किया पर उनकी यह हिमाकत हमारे समाज को दूषित करती और विपरीत प्रभाव डालती है……………….!

स्मोकिंग यानि ध्रूमपान . धुरूम+पान ….अर्थार्त धुवे का पीना. मेरे प्रिये दोस्तों और भाइयो . अब मै आपसे एक सवाल पूछता हूँ.इस संसार में हमारे इश्वर (अल्लाह) ने पीने के लिए हमें नायाब से नायाब चीजे दी है जैसे, पानी, दूध, जूस, लस्सी आदि तो फिर कौन सी वह मजबूरी है जिसमे हम अपनी शरीर को मारने वाला धुवा पी रहे है. एक मिनट के लिए अपने दिमाग पर ज़रा जोर डाले . बचपन में हमारा घरो में जब गैस नहीं हुवा करती थी, हमारे घरो मे कोयले या बुरादे की भट्टी जला करती थी. हमारे घरो में खाना पकाने से पहेले उस भट्टी को हमारे घरो की औरते (माँ, बहिन या और लोग) उसको सुलगती थी तो उसके ज़रा से धुवे को हम बरदाश नहीं कर पाते थे. हमारे आँखों से आसू और आवाज़ में एक जाल सा बन जाता था और हम लोग घर से बाहर चले जाते थे ..
आज हमारा युवा-वर्ग स्मोकिंग (धूम्रपान) के माध्यम से अपनी या अपने पूर्वजो की मेहनत की कमाई को धुवे में उड़ा रहा है…… उसको ऐसा लगता है की वह भी फ़िल्मी हीरो देव-आनंद की तरह है …. जो परदे पर कहते है … की मै फिक्र को धुवे में उडाता चला गया…. लेकिन शायद युवा वर्ग को पता नहीं की वह फ़िक्र को धुवे में नहीं उड़ा रहा है बल की अपनी मेहनत की कमाई और अपने स्वस्थ को धुवे में जला रहा (उड़ा).यहाँ पर मै सभी भाइयो और दोस्तों से सिर्फ एक सवाल पूछना चाहता हूँ ……….? एक सामान्य बुद्धि और एक असामान्य बुद्धि वाले इंसान में किया अंतर होता है …..सामान्य इंसान वह होता है जिसके कार्य को सामने वाला इंसान तारीफ करता है और बोलता है की उसने अपनी सूझ-बूझ का परिचय दिया और एक असामान्य व्यक्ति को सभी लोग मजाक बनाते और बुरी नज़र से देखते है.तो एक असामान्य व्यक्ति ही अपने धन और तन दोनों को जलती हुई आग पर रखेगा और ऐसा करने पर वह गर्व महसूस करता है. वह सोचता है की उसका कार्य सामाजिक, नैतिक, आर्थिक और धार्मिक दृष्टि (नज़र) से ठीक है पर शायद उसको पता नहीं वह किस तरफ जा रहा है किया कभी एक स्वस्थ मष्तिस्क वाले को अपने धन और तन को आग की भट्टी में डालते हुवे देख है….शायद ...............नहीं……नहीं…….नहीं.धूम्रपान करने वाला इंसान मानसिक तौर पर स्वस्थ नहीं होता है तभी से वह अपने अस्वस्त होने का परिचय देता है और एक न दिखने वाले जाल में निरंतर फसता जाता है…………ईश्वर(अल्लाह) उनको सही रास्ता दिखाए ......................................................!

लेकिन आज के आधुनिकता का दौर में इंसान अपने मौत की तरफ खुद ही भगा चला जा रहा है. स्मोकिंग (धूम्रपान) का इतिहास आज का नहीं है, यह लगभग 5000 BC से हम से और हमारी संस्कृति से जोख की तरह चिपका हुवा है एक लम्बे समय से सूखे हुवे चिंगम की तरह चिपका हुवा है ..! पहेले स्मोकिंग का रिवाज़ धार्मिक उत्सव के समय किया जाता था.हुक्क, सिगार, बीडी और चिलम, ओपियम (अफीम), आदि स्मोकिंग के स्वरुप है !
सिगरेट पीते वक़्त इंसान मुँह के द्वारा उसके धुवे को अंदर खीचता है और जो फेफड़ों से होता हुवा हमारे नाक के माध्यम से निकलता है.अब सवाल उठता है की एक ज़रा से धुवा जब हमारे आँखों या नाक में जाता है तो हम अपने आप से अपना नियंत्रण खो देते है. वही धुवा जो हमारे शरीर से (फेफड़ों) से गुज़रेगा तो हमारे कोमल अंगो पर उसका किया प्रभाव होगा. इन्हालिंग द्वारा (धूम्रपान) यह धुवा हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालता है,धूम्रपान के दौरान कार्बन मोनोऑक्साइड हमारे फेफड़ों में प्रवेश करती है और विपरीत एवम् गंभीर स्वास्थ्य खतरों और रोग पैदा करते है जैसे फेफड़ों के कैंसर, फेफड़ों में संक्रमण, स्तन कैंसर, हार्ट अटैक (दिल का दौरा), नपुंसकता, जन्म के समय कम वजन. इस रोग और वेदनाओं कि धूम्रपान से हो संवहनी प्रकार का रोग भी हो सकता है कान, नाक और गला में संक्रमण ,. संचार प्रणाली , कम दिल दर परिवर्तनशीलता, उच्च हृदय गति.अस्थमा का जोखिम. संज्ञानात्मक हानि, पागलपन, गर्भावस्था, जन्म के समय कम वजन ,सीखना में कठिनाइयों, शारीरिक विकास में देरी है, निमोनिया,दंत रोग-दंतक्षय में वृद्धि, धूम्रपान का एक आम परिणाम चेहरे में परिवर्तन…......................इत्यादि !
हमरे युवा पीड़ी में धूम्रपान आज एक STATUS SYMBOL यानि उसकी सामाजिक स्तिथि को परिभाषित करती है. आज हमारे युवा पीड़ी मॉडल और साथियों की उपस्थिति में बिना किसी भेद भाव के धूम्रपान को प्रोत्साहित कर सकते हैं.क्योंकि किशोरों -वयस्कों की तुलना में अपने साथियों से अधिक प्रभावित होते हैं सिगरेट से रोकने में अभिभावकों, स्कूलों और स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा कोशिश कर रहे लोग अक्सर नाकाम रहे है……………………!
मनोवैज्ञानिकों के राय में धूम्रपान करने के लिए एक व्यक्तित्व ज़यादातर उत्तेजना, अंडर प्रेशर और भय के कारण इसकी ओर आकर्षित होता है.वह अपने मानसिक दर्द को दूर करने और अपने को चिंता मुक्त होने के लिया धूम्रपान का आदी हो जाते है. उनको इसका पता ही नहीं चलता है की कब वह इस जाल मे कैद हो गया .
धूम्रपान का हमारे स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है लेकिन अगर हम अपने युवा और अपने परिचित लोगो को इसके बारे में जागरूक करते है तो उनको लगता है की हम उनकी व्यक्तिगत आजादी पर हमला कर रहे है पर उनको इसके विपरीत प्रभाव का पता नहीं है.सिगरेट अक्सर दोस्तों के बीच एक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है या बस एक अच्छा बहाना कई सेटिंग्स में अजनबियों के साथ एक बातचीत के आदान शुरू करने के लिए है काम पर रात क्लब, या सड़क पर एक सिगरेट अक्सर आलस्य या मात्र एकांत और उत्तेजना की उपस्थिति से बचने का एक प्रभावी तरीके के रूप में देखा जाता है.किशोरों के लिए, उसे बचपन से बाहर एक पहला कदम या वयस्क दुनिया के खिलाफ विद्रोह के एक अधिनियम के रूप में के रूप में कार्य कर सकते हैं.मनोरंजन नशीली दवाओं के प्रयोग के अलावा, यह और आत्म का विकास छवि निजी अनुभवों धूम्रपान से जुड़ा है और अपनी पहचान के निर्माण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
धूम्रपान का सबसे बुरा प्रभाव हमारे परिवार के सदस्यों (माँ-बाप, बीवी-बच्चे) जो एक ही स्थान पर हमारे करीब होते है .हमारे शरीर में दाखिल होने वाला ज़हर जितना नुक्सान हमारे शरीर को करता है उतना ही उनके कोमल शरीर को करता है.यहाँ मै एक बिंदु की तरफ इशारा करना चाहता हूँ की भाइयो और दोस्तों ……. हम दिन रात जान-तोड़ मेहनत किसके लिए करते है निश्चित अपने और अपने परिवार के लिए………..शायद इस संसार में कुछ ही लोग होगे जो सिर्फ अपने लिए जीते है .हम अपने परिवार विशेष कर अपने बच्चो के भविष के लिए ही निरंतर काम करते है और उनके लिए हे जीते और मरते है.एक माँ-बाप अपने बच्चो को अच्छे से अच्छा भोजन,कपडे और शिक्षा के लिए हमेशा संघर्ष करते है.उनका प्रयास होता है की नाश्ते में उनको ब्रेड के साथ दूध, मक्खन और जाम मिले, दोपहर में स्वादिस्ट सब्जी, दाल या उनकी इक्छा के अनुसार भोजन मिले और शाम को वह सब के साथ बैठ कर चटपटे वयंजन और कुछ मिष्टान आदी के साथ भोजन करे और कभी-कभी वह उनको बहार घूमने के लिया ले जाये ताकि वह भी उनको कुछ नया और अच्छा खाने को मिले………यानि उसका पूरा ध्यान उनकी सेहत और स्वाद पर होता है…………………….अब सवाल उठता है की जो माँ-बाप अपने बच्चो को इतना प्यार करते है…………तो वह इतने निर्दयी और लापरवाह कैसे हो जाते है की वह परिवार के सामने और परिवार के बीच में रह कर धूम्रपान करते है और उसको अप्रत्याश रूप से प्रोतसाहित करते है……………..हम अपने बच्चो को जब दूध और मक्खन देते है तो बोलते है की बच्चो यह तुम्हारे स्वस्थ के लिया अच्छा है तो हमारे बच्चे उसपर अमल करते है और उसे अपनी आदत में धाल लेते है तो हम लोग इतनी निर्दयी और लापरवाह कैसे हो जाते है की हम उनको साथ साथ यह मीठा ज़हर भी देते है …………………जब हम धूम्रपान करते है तो उनके कोमल दिमाग पर भी उस सिगरेट का उतना ही प्रभाव पड़ता है.वह समझते है की यह भी हमारे लिया ठीक है………..और वह इसे भी अपनी भोजन-जीवन शैली में शामिल कर लेते है………तब जब हम उनको वही करते हुवे देखते है तो उनपर अपना गुस्सा निकलते है…………..किया यह ठीक है………नहीं…. क्यों कि हर बड़ा अपने छोटो का मार्गदर्शक….रास्ता दिखाने वाला होता है…….हम जैसे करते है …बच्चे भी वैसा अनुसरण करते है………हमारे ही गलत कार्य शैली - जीवन शैली ……हमरे माध्यम से उन तक जाती है ………..यानि हमही उनके जीवन में ज़हर घोल ने के लिए सुव्यम उत्तरदायी (जिम्मेदार) है.हम उस कुम्हार की तरह है जो अपनी मिटटी (बच्चो) को जिस रूप में चाहे ढाल सकता है उसे अच्छा बुरा स्वरुप दे सकता है...............................!

मै यहाँ एक और सवाल पूछना चाहता हूँ अपने धूम्रपान करने वाले भाइयो और दोस्तों से की …..जब हम सुबह सो कर उठते है तो हमारे मुँह से जो दुर्गंद निकलती है उसको साफ़ करने के लिया तरह तरह के टूथपेस्ट इस्तेमाल करते है और दात् और मुँह की सफाई के लिए जागरूक रहते है और पैसे की परवा नहीं करते है………तो फिर वह कौन सा कारण है, वह कौन सी मजबूरी है जो हम अपने मुँह में खुद ही गंदगी और दुर्गन्ध डाल रहे है और अपने स्वास्थ और धन से खेल रहे है……….निश्चित ही ये एक समझदार और सामान्य इंसान का काम नहीं हो सकता है
धूम्रपान से लोगो को होने वाली हानियों के लिए धूम्रपान अभियान और मास मीडिया के माध्यम से जागरूक करने के लिए जागरूकता अभियान चलाये जाते है सार्वजनिक स्थानों में धूम्रपान करने पर रोक लगाई गयी है आज धूम्रपान एक आम चिंता का विषय है और नाबालिगों के बीच धूम्रपान को हतोत्साहित करने के लिए कई राज्यों अंडर-एज ग्राहकों को तंबाकू उत्पादों की बिक्री के खिलाफ कानून पारित किया है.धूम्रपान अभियान और शिक्षा के द्वारा नकारात्मक प्रभावों (पर्यावरण तम्बाकू धुआँ) की व्याख्या के लिए कुछ प्रमुख विरोधी नीतियों को अपनाया गया है.व्यापक तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम के कारण सिगरेट पर काफी गिरावट आई है धूम्रपान और पर्यावरण एक दूसरे से अछूते नहीं है.हमारे धूम्रपान का हमारे आस-पास के माहौल को और धूम्रपान की वजह से ही घरो में आग लगजाती और जान और माल का काफी नुकसान हर साल होता है

अंत में मै अपने भाइयो और दोस्तों से सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि................................!

ज़िन्दगी है अनमोल, तू इसमें ज़हर मत घोल ,
एक बार जीवन का मिला है जो स्वाद अपने अल्लाह (इश्वर) से,
कर ले तू चिंतन खुद पर निर्भर पारिवारिक जीवो को,
याद जो आये तुझको इस धूम्रपान कि ,
देख ले तू अपनी जान और माल का,
सास लेना हुवा है अब तुझको दूभर ,
पर बनता है तू अब भी सुपर ,
जान ले तू इस दुनिया में अकेला नहीं है ,
तुझ पर तेरे परिवार का बोझ भी है,
हाय: अगर तू चला गया वक़्त से पहले,
टूट जायेगे सारे ख्वाब परिवार के तुजसे पहले.
तो कर ले तू ध्यान और हो न मगन इस सिगरेट में,
क्यों कि, ,,,,,,,ज़िन्दगी है अनमोल, तू इसमें ज़हर मत घोल.

जय भारत... ..जय भारत वासी

इसरार अहमद

1 टिप्पणी:

Vinashaay sharma ने कहा…

cigreete ke dooshit parinam to hai

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